हमारे समाज में एक युवक-युवती के एक साथ रहने को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता। लेकिन इन दिनों तमाम बड़े शहरों में लिव इन रिलेशनशिप खूब पनप एवं फल फूल रही हैं। खास बात यह है कि समाज बेशक उन्हें तिरछी नजर से देखे, लेकिन कानून उनके साथ खड़ा है।

ऐसे बहुत से मामलों में कोर्ट ने लिव इन में रहने वाले जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने के भी निर्देश दिए हैं, जिन्हें इस रिश्ते की वजह से अपने परिजनों अथवा समाज के किसी वर्ग से खतरा था।

लिव इन में रह रही महिलाओं को कानून में कई तरह के अधिकार दिए गए हैं। आज इस पोस्ट में हम आपको लिव इन रिलेशनशिप कानून एवं ऐसे रिश्ते में रहने वाली महिला के अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं।

दोस्तों, आपको बता दें कि भारत में इस संबंध में संसद में कोई कानून नहीं बनाया गया है, अपितु सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस संबंध में दिए गए आदेश को ही कानून मान लिया गया है। सामान्य शब्दों में कहें तो यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें दो लोग, जिनका विवाह नहीं हुआ है पति पत्नी की तरह साथ रह सकते हैं।

किंतु यह संबंध स्नेहात्मक एवं लंबे समय तक चलने वाला होना चाहिए। रात भर किसी के साथ गुजारने से लिव इन रिलेशनशिप नहीं कही जा सकती। सबसे बड़ी बात कि ऐसे दोनों लोग बालिग हों।

दोस्तों, आपको बता दें कि आज से करीब 43 साल पहले सन् 1978 में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने पहली बार लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship) को कानूनी तौर (legally) पर सही कहा।

जस्टिस कृष्ण अय्यर ने कहा कि यदि पार्टनर लंबे समय तक पति पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो पर्याप्त कारण है कि इसे विवाह माना जाए।

दोस्तों, आपको बता दें कि 15 साल पहले यानी 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में फैसला देते हुए कहा था कि वयस्क होने के बाद व्यक्ति किसी के भी साथ रहने अथवा शादी करने के लिए स्वतंत्र है।

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